भगवान वासुदेव से बढ़कर न कोई प्रेमी और न ही कोई हुआ उपदेशक।
आज पूरा देश भगवान श्री कृष्णा के जन्मोत्सव को मनाने में पूरे उत्साह के साथ लगा हुआ है भक्त गण श्री कृष्ण की भक्ति में डूबे हुए हैं संपूर्ण कलाओं के अवतार और समस्त शक्तियों से संपन्न होने के बावजूद भी भगवान कृष्ण ने एक साधारण मनुष्य की भांति ही लीला किया है असीमित शक्तियों के मालिक अगर चाहते तो कारागार में जन्म न लेकर कहीं भी प्रकट हो सकते थे लेकिन उन्हें तो कंस के अत्याचार से पीड़ित अपने मां-बाप को कि भरोसा दिलाना था कि अब आप चिंता ना करें आपके कष्टों को हरने वाला अवतरित हो चुका है आश्चर्य की बात तब हुई कि जैसे ही भगवान का जन्म हुआ देखते ही देखते जेल के सारे ताले टूट गए बंदी रक्षक जहां के तहां गहरी निद्रा में सोने लगे और भगवान ने अपने लिए अपने पिता को ही अपने सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने के लिए माध्यम बना लिया यह सिर्फ इसलिए किया कि पिता को भी महसूस हो कि हम अपने बेटे की सुरक्षा करने में अपना कुछ योगदान दे पाए हैं अगर प्रभु चाहते एक पल में कहां से कहां पहुंच सकते थे लेकिन एक साधारण बालक की भांति हर बाल लीला से अपने लोगों को हर्षित होने का मौका प्रदान करते रहे उनके साथ रहने वाले ग्वाल-बाल और मैया यशोदा को उनके बाल लीला का आनंद उठाने का भरपूर मौका मिलता रहा एक पल में समूचे सृष्टि का संघार करने की शक्ति रखने के बावजूद शिशुपाल की 99 गालियों को सहने की अद्भुत शक्ति भी थी श्री कृष्ण में जब 100 की सीमा पार किया गया तब सुदर्शन चक्र से उसका संघार किया पांडवों का दूत बनकर जब कौरव दरबार में गए तब मूर्खता बस दुर्योधन ने ईश्वर को ही बांधने का दुस्साहस साहस कर दिया तब उन्होंने विराट रूप दिखाया उसके बावजूद सर्व शक्तिमान होने के साथ-साथ अपने हाथ से किसी का संघार नहीं किया सुदर्शन चक्र जैसा संघारक अस्त्र होने के बावजूद उनके हाथों में सदैव प्रेम का संदेश देने वाला मुरली विराजमान रहता था जब कोई धृष्टता करते हुए प्रेम की भाषा नहीं समझता तब उसे सुदर्शन चक्र की भाषा समझाई जाती थी।
भगवान कृष्ण जैसा प्रेमी कोई दूसरा नहीं दिखाई पड़ता उनके जैसी मित्रता निभाने वाला भी कोई नहीं है मित्र सुदामा की दशा को देखकर इतना रोए
जिसका वर्णन करते हुए कवि लिखते हैं—
देख सुदामा की दीन दशा करुणा करके करुणा निधि रोए।
पानि- परात को हाथ छुए नहिं नैनन के जल से पग धोए।।
और जब जब भक्तों पर संकट आया है तब तब भगवान ने अपने भक्त के सारे कष्टों को स्वयं ले लिया है
इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जब कौरवों की सभा में द्रोपती का चीर हरण हो रहा था तो उस समय उनकी लाज बचाने के लिए बड़े से बड़े महारथी उपस्थित होने के बावजूद कोई सामने नहीं आ रहा था तब भगवान ने भरे दरबार में द्रोपदी की लाज बचाई साड़ी की चीर इतनी बड़ी हो गई की खींचते खींचते दुशासन बेहोश होकर गिर पड़ा लेकिन द्रोपदी की लाज को आंच नहीं आने पाई।
संपूर्ण कलाओं से युक्त भगवान कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में एक अस्त्र भी नहीं उठाया लेकिन अपनी कूटनीति के बल पर पपियों का संघार करा दिया।
कुरुक्षेत्र के मैदान में जब अर्जुन युद्ध करने से विचलित होने लगे और युद्ध के मैदान में यह कहने लगे–
कि हे माधव मन बहुत चंचल है अत्यंत बलशाली है दृढ़ है इसे बांधना ठीक उसी प्रकार कठिन है जैसे हवा को मुट्ठी में बांधना मेरा मन युद्ध करने से विचलित होता है।
तो भगवान ने अर्जुन को समझाते हुए कहा–
यह पार्थ मन को कर्तव्य की डोरी से बांधो अन्यथा इसकी चंचलता तुम्हें इधर-उधर लिए लिए फिरती रहेगी तुम्हें एक मात्र माध्यम बनना है बाकी सब पहले ही निश्चित है।
ऐसे ही तमाम विविधताओं, अलौकिक शक्तियों और चमत्कारों से युक्त है भगवान श्री कृष्ण का जीवन शत-शत नमन है उन्हें ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः।
ब्यूरो रिपोर्ट- S9-BHARAT