मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने प्राथमिक विद्यालयों में अध्यापकों की कमी पूरा करने के लिए बीएड, बीपीएड एवं सीपीएड डिग्री धारकों को प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक बनाया।
लेकिन तब अध्यापकों के पदों के सापेक्ष डिग्री धारक ही कम थे अतः मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के कार्यकाल में ही 2001 में शिक्षामित्र का पद सृजित किया गया और यह शर्त लगाई गई कि अगर कोई BED डिग्री धारक है
तो प्राथमिकता के आधार पर उसी का चयन किया जाएगा।
कि जहां बीएड डिग्री धारण नहीं मिले वहां हाई स्कूल इंटर पास लोगों को शिक्षामित्र के पद पर काम करने का अवसर दिया गया।
प्रदेश भर में शिक्षा मित्रों की संख्या लाखों में थी नतीजा हर राजनीति पार्टियों की निगाहें शिक्षामित्र की तरफ जाने लगीं।
शिक्षामित्रों ने पूरे मनोवेग के साथ प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने का काम भी किया।
समय बीतता गया प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी और अखिलेश यादव सरकार के मुखिया बने।
उन्होंने शिक्षामित्रों को पूर्ण कालिक शिक्षक बना दिया लेकिन कुछ कानूनी दांव पेंच के आधार पर शिक्षामित्र सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा हार गए ।
और उन्हें फिर से शिक्षामित्र के पद पर ही काम करना पड़ रहा है और वह भी मात्र 10 हजार रुपए के मानदेय पर।
इस मंहगाई के समय में शिक्षा मित्र किस तरह से गुजारा करते हैं ये तो वही जाने लेकिन इतना तो तय है कि उनका जीवन आर्थिक तंगी से गुजर रहा है।
आज शिक्षामित्रों ने कैसरगंज सांसद बृजभूषण शरण सिंह के आवास विश्नोहरपुर में जनता दर्शन के दौरान बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ के प्रदेश अध्यक्ष शिव कुमार शुक्ला के नेतृत्व में जिला अध्यक्ष गोंडा अवधेश मणि मिश्रा ,जिला महामंत्री शिव मूर्ति पांडे, मंत्री अभिमन्यु मिश्रा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुनील कुमार सिंह, अध्यक्ष देवी पाटन मंडल रामलाल साहू, उपाध्यक्ष राजेंद्र वर्मा आदि पदाधिकारियों ने सांसद कैसरगंज से मिलकर उन्हें 6 सूत्री मांगों से अवगत कराया।
सांसद ने पदाधिकारियों को आश्वस्त करते हुए कहा कि आपकी जायज मांगों से जल्द से जल्द भारत सरकार को अवगत कराकर समाधान करने का प्रयास किया जाएगा।
ब्यूरो रिपोर्ट S9 Bharat