भारतीय राजनीति का अजातशत्रु -अटल बिहारी सब पर भारी

पंडित अटल बिहारी वाजपेई राजनीति का एक ऐसा नाम- जिनका BJP के साथ-साथ विपक्षी पार्टी के भी लोग करते थे सम्मान।
हिंदुस्तान की राजनीति का एक बड़ा नाम अटल बिहारी बाजपेई जो राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक पत्रकार एवं उच्च कोटि के कवि भी थे।
आजादी के बाद पहली बार 1952 में आम चुनाव हुआ ।
लेकिन 1953 में अटल बिहारी वाजपेई ने पहला चुनाव लड़ा यह चुनाव सन में लड़ा गया जब पंडित नेहरू की बहन लखनऊ से सांसद थी पंडित नेहरु ने बहन विजय लक्ष्मी पंडित को UN में भारत का राजदूत बनाकर भेज दिया तो यह सीट खाली हो गयी उस समय अटल जी को श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जिन्हें जनसंघ का संस्थापक कहा जाता है उनका सचिव बना दिया गया था उनके कहने पर अटल बिहारी बाजपेई जो मात्र 28 साल के पत्रकार थे लखनऊ से चुनाव लड़े कांग्रेस के उम्मीदवार एसआर नेहरू से बुरी तरह से हार कर तीसरे नंबर पर चले गए।

1997 अटल बिहारी वाजपेई को 3 सीटों से चुनाव लड़ाया गया उन्हें 3 सीटों से चुनाव सिर्फ इस नाते लड़ाया गया कि वे किसी प्रकार पार्लियामेंट में पहुंच जाएं उनके जोरदार भाषण से जनसंघ को मजबूती मिलेगी वह तीन सीटें मथुरा, लखनऊ और गोण्डा जिला का ही भाग रहा बलरामपुर थी मथुरा सीट से अटल बिहारी वाजपेई राजा महेंद्र प्रताप सिंह से हार गए लखनऊ सीट भी वे कम अंतर से पराजित हो गए।

बलरामपुर लोकसभा सीट से जो गोंडा जनपद का हिस्सा था इस सीट से अटल बिहारी वाजपेई ने कांग्रेस प्रत्याशी को हरा दिया।

1962 में बलरामपुर सीट से पंजाब के शरणार्थी परिवार से आईं सुभद्रा जोशी से अटल बिहारी वाजपेई मामूली वोटों के अंतर से हार गए तब उनकी राजनीति को झटका लगा लेकिन उनका संघर्ष जारी रहा बलरामपुर क्षेत्र के इर्द-गिर्द के इलाकों में कुछ मजबूत राजनीतिक परिवार से उनका संबंध बना रहा।

गोंडा की राजनीति में ब्राह्मण राजनीति में अच्छा खासा दखल रखने वाले स्वर्गीय घनश्याम शुक्ला के पिता चंद्रशेखर शुक्ला से उनका बहुत ही आत्मीय लगाव था ।

अटल जी के बलरामपुर के चुनाव में पंडित चंद्र शेखर शुक्ला बड़ा योगदान रहता था अपने संघर्षशील साथियों के बलबूते 1967 के चुनाव में फिर से बलरामपुर सीट से अटल बिहारी वाजपेई ने सुभद्रा जोशी को आधा से अधिक वोट पाकर हरा दिया।

1971 के चुनाव में अटल जी बलरामपुर सीट छोड़कर अपने गृह जनपद ग्वालियर चले गए यह चुनाव क्षेत्र राजमाता विजयराजे सिंधिया का मजबूत गढ़ था।

इस सीट से कांग्रेस के गौतम शर्मा को हराकर अटल बिहारी वाजपेई हैं इस सीट को जीत लिया।

1977 का चुनाव आया इस चुनाव तक दिल्ली जनसंघ का सबसे बड़ा गढ़ माना जाता था यहां के नई दिल्ली सीट से अटल बिहारी बाजपेई चुनाव लड़े बिना किसी कठिनाई के उन्होंने चुनाव जीत लिया।

लेकिन 1980 के चुनाव में स्थितियां बदलती नजर आईं दिल्ली के 7 लोकसभा सीटों में 6 कांग्रेश जीत गई और अटल बिहारी वाजपेई किसी तरह से हारते हारते बचे और मात्र 4, 5 हजार वोट अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी को हरा पाए।

उसके बाद भारतीय जनता पार्टी बनी और उस पार्टी के पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेई बनाए गए।

अटल जी कट्टरपंथी विचारधारा के नहीं थे वे समाजवादी गांधीवाद की वकालत करने लगे जिससे संघ उनसे नाराज होने लगा।

इंदिरा जी की हत्या के बाद पूरे देश में इमोशनल माहौल बना और 1984 के चुनाव में कांग्रेस के राजनैतिक आंधी में भारतीय जनता पार्टी 2 सीटों पर सिमट गई।

विरोधी हम दो हमारे दो का नारा भाजपा के खिलाफ बुलंद करने लगे।

पार्टी की इस बड़ी हार से अटल बिहारी वाजपेई की चारों बदनामी होने लगी अंततः संघ दबाव में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

और उनके स्थान पर लालकृष्ण आडवाणी राजनीति की मुख्यधारा में आ गए।

अटल जी ग्वालियर सीट से माधवराव सिंधिया के सामने मामूली अंतर से नहीं बल्कि बुरी तरह से पराजित हो गए।
इस पराजय न पार्टी में अटल जी के राजनैतिक हैसियत कम कर दिया लेकिन परिस्थिति बदली फिर से अटल नाम चर्चा में आ गया।

पार्टी ने 1991 में उन्हें लखनऊ और विदिशा 2 सीटों से चुनाव लड़ाया।

अटल जी ने लखनऊ में कांग्रेस के रंजीत सिंह को पराजित कर दिया।

1996 के चुनाव में लखनऊ से उनके सामने फिल्म स्टार राज बब्बर चुनाव लड़ने आए।

उसी वर्ष गांधीनगर सीट से भी अटल बिहारी वाजपेई को चुनाव लड़ाया गया यह दोनों सीटें उन्होंने जीत लिया।
अटल के नेतृत्व में पार्टी सफलता का नित नया इतिहास लिखती जा रही थी।

अब तक भाजपा के तीन बड़े चेहरों अटल, आडवाणी,और मुरली मनोहर जोशी का नाम देश के बच्चे बच्चे के जुबान पर आ गया था।
गांव के गलियारों से लेकर बड़े बड़े शहरों तक एक नारा बुलंद होने लगा कि
धरती के तीन धरोहर,
अटल, आडवाणी, मुरली मनोहर।

अटल जी का राजनैतिक कद इतना बढ़ गया था कि अब भाजपा का नया नारा
अबकी बारी अटल बिहारी हो गया।
यह नया नारा जनता को भा गया और पार्टी सफलता पर सफलता का इतिहास लिखने लगी।

1998 में अटल बिहारी बाजपेई लखनऊ से भाजपा के प्रत्याशी बने उन्होंने कांग्रेस के मुजफ्फर अली को चुनाव हराकर बड़ी जीत हासिल की।

1999 में अटल बिहारी बाजपाई लखनऊ से फिर से प्रत्याशी बनाए गए उनके सामने कर्ण सिंह जैसे कद्दावर नेता चुनाव लड़ने लगा करण सिंह को पराजय का सामना करना पड़ा।

2004 के चुनाव में प्रधानमंत्री रहते हुए फिर से पंडित अटल बिहारी वाजपेई लखनऊ सीट से चुनाव लड़े उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी मधु गुप्ता को हराया।

अभी ऊपर हम उनके जीत का जिक्र कर रहे थे लेकिन वह से कौन ऐसे बड़े हार थे जो अटल बिहारी वाजपेई को रुला रहे थे।

1953 में लखनऊ सीट से वे कांग्रेस के उम्मीदवार SR Nehru से हार गए अटल जी की इस हार ने जनसंघ को चिंता में डाल दिया।

1962 में अटल बिहारी वाजपेई बलरामपुर सीट से पराजित हो गए।

1984 में ग्वालियर सीट से उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

4 अप्रैल 1999 का हार उनके लिए बहुत ही दुखदाई था वे संसद में विश्वास मत हासिल करने के दौरान मात्र 1 वोट का हार गए जिससे उन्हें प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा यह हार अटल जी अपनों से धोखा मिलने के कारण हुआ इस धोखेबाजी ने अटल जी के अंतर्मन को दुखी कर गया और आंख से आंसू छलक पड़े।

2004 के चुनाव में भाजपा ने फील गुड का नारा देकर अपने चुनाव जीतने के प्रति आश्वस्त थी उसे लग रहा था इस सड़कों की बेहतर कनेक्टिविटी व स्वर्णिम चतुर्भुज राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना और अन्य तमाम महत्वपूर्ण कार्य भाजपा को जिताएंगे इसी को लेकर के समय पहले चुनाव करा दिया गया।

पार्टी के शीर्ष नेताओं को पूर्ण विश्वास था कि यह चुनाव हम फिर से जीतेंगे।

लेकिन भारतीय जनता पार्टी का फील गुड का नारा जनता को समझ में नहीं आया पार्टी कांग्रेस के सामने हार गईऔर 2004 का चुनाव अटल बिहारी बाजपेई को भारत के सक्रिय आने से दूर करता चला गया।

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एस.एस.के.सिंह- मुख्य संपादक- S9 Bharat

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